Sunday 6 September 2020

मूर्ति विसर्जन कितना उचित

मैं विगत कई वर्षो से मूर्ति विसर्जन का विरोध करता आ रहा हूँ और तबतक मेरा विरोध जारी रहेगा..जबतक मूर्ति विसर्जन बंद नहीं हो जाता !! 
जब मैं कहता हुँ कि,मूर्ति विसर्जन करना गलत है तो कुछ दूसरे ग्रह से आये विद्वान् कुछ ऐसा दलील प्रस्तुत करते है 👉श्री वेद व्यास जी ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश जी को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था, इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए थे, 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत अधिक हो गया है. तदुपरांत वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी मिट्टी का लेप किया और गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर शीतलता प्रदान  किया था. बस इसी को प्रतीक के रूप में गणपति विसर्जन के रूप में गणपति प्रतिमा को नदी - सरोवर में डाल दिया जाता है. 
यह बात कहना बिलकुल गलत है..आप इस तरह की गलत तरीके से गलत बात को तोड़ मरोड़ कर सही  सिद्ध करने कि कोशिश कर रहे हैं. 
🤔क्या वेद व्यास ने गणपति जी को जल में डुबो कर छोड़ दिया था ? 
👍नहीं ! 
तो आप क्यों विसर्जन के नाम पर प्रतिमा डुबो कर छोड़ देते हैं ? 
ऐसा करना आपका सरासर गलत कार्य है. आप गणपति पर घात कर रहे है.. धर्म पर घात कर रहे हैं. आपके ऐसा करने से लोगों में आसूरी प्रवृति जागृत होंगी. आसुरी प्रवृति के लोगों कि संख्या बढेगा..वे फिर आप पर और धर्म पर घात करेंगे. 
वैसे मैं आपको बतला दूँ कि, शिव परिवार का विसर्जन नहीं होता. अगर कोई करता है..फिर उसका क्या होगा..वही समझें !! 
इस आशय से एक कथा शिव पुराण आदि में वर्णित भी है - प्रजापति दक्ष के द्वारा उकसाये जाने पर माता सती ने अपने महल में रखे शिवलिंग को विसर्जन करने चली. नदी के किनारे महृषि दधीचि ने ऐसा करने से रोका तो देवी सती ने कहा - "मै अपने जीवन से शिव को हमेशा के लिए दूर करने हेतु महादेव के प्रतीक शिवलिंग को जल में विसर्जन करने जा रही हुँ"..  और तब महर्षि ने कहा कि, "महदेव के प्रतीक शिवलिंग  का विसर्जन नहीं होता है..अतः हे देवी !! यह शिवलिंग आप मुझे दें दें. " 
जिन्हे विसर्जन पर शंका हो..वे कृपया ग्रंथो का अपनी बुद्धि शुद्ध रखते हुए तनिक अध्ययन कर ले 🙏 
✔️क्या आप देवता या देवी के प्रतीक प्रतिमा को जल में विसर्जन कर अपने जीवन से उन्हें हमेशा के लिए दूर नहीं कर रहे ? 
✔️गणपति का विसर्जन कर जीवन से शुभता दूर नहीं कर रहे ?  
✔️लाभ आपसे दूर नहीं हो रहा ? क्या आपको हानि नहीं उठानी पड़ रही ? 
✔️ गणपति को जल में डुबोकर छोड़ देने वाले आप यह बतलाओ कि आपके जीवन से रिद्धि दूर नहीं हो रही.. ?  
रिद्धि अर्थात संचय पुण्य का..धन का.. धान्य का..भौतिक सुख यथा भूमि भवन वाहनआदि सुख का आदि. 
✔️क्या आपके जीवन से सिद्धि दूर नहीं होती चली जा रही है..सिद्धि अर्थात कोई भी सामान्य कर्म या अध्यात्मिक कर्म कि सफलता.
याद रहे कि, देवता या देवी कि प्रतिमा का विसर्जन करते ही आप सारा संचित पुण्य असुरों को मिल जा रहा है.. जिस कारण वे दिन दूनी रात्रि चौगुनी धन से जन से बढ़ते चले जा रहे है.. असुर उन्हें कहते है जो प्रकृति के विरोधी हो..जो गलत और आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहते हों.
✔️तो क्या करना उचित होगा ?  
तो उचित यह होगा कि जिस तरह से महर्षि व्यास ने सुगंधित मृत्तिका का लेप कर गणेश जी को सरोवर के जल से स्नान कराकर शीतलता प्रदान की थी..ठीक उसी प्रकार आप भी करें..मृत्तिका का लेप सिर्फ धातु की प्रतिमा पर ही हो सकता है..और इस प्रतिमा को सरोवर आदि में स्नान कराके वापस घर में स्थापित कर देना चाहिए. यह उचित और सहित विधि है..जहाँ तक मैं समझता हुँ.. आगे से भक्तगण ऐसा ही करेंगे.. मूर्ति का विसर्जन करके गणपति को अपने जीवन से दूर कर स्वयं को उनके आशीर्वाद से वंचित नहीं करेंगे. 
👍इसी तरह दशहरा में काली दुर्गा आदि का प्रतिमा बना कर फिर जल में विसर्जन करना भी तंत्र विरोधी कार्य है. दुर्गा आदि देवियाँ शिव परिवार के ही है और शिव से सम्बंधित कोई भी प्रतीक का जल आदि में विसर्जन नहीं हो सकता है.. हाँ पूजन में प्रयुक्त सामग्री जिसको बाद मे हटाया या उतरा जाता हो और जिसका कोई अन्य उपयोग ना हो उसका सरोवर आदि के जल में विसर्जन किया जा सकता है. 
✔️कुछ लोग दुर्गा सप्तशती के मूर्ति त्रय रहस्यं के बारे में बोलेंगे.  
तो मैं आपको बतला दूँ कि, सुरथ आदि वैश्य ने निर्जन  और गुप्त स्थान पर देवी साधना किया था..आपके तरह रोड पर नुमाइश लगाकर नहीं !! 
ऐसा करके आप देवी का अपमान ही करते है..नतीजा आपके सामने आ भी रहा है.  
✔️तो उचित क्या होगा ?  
👍देवी उपासना हमेशा गुप्त एवं सुरक्षित स्थान पर ही करें.  
👍देवी साधना का नुमाइश -प्रदर्शनी ना लगाए.  
👍देवी के प्रतीक प्रतिमा का निर्माण कर जल में विसर्जन ना करें इसके जगह आप देवी मंदिर में पूजन करें. 
✔️प्रतिमा का विसर्जन से देवी आपके जीवन से सदा के लिए दूर हो जाएंगी और फिर आपको उनके आशीर्वाद का अनुभव कभी नहीं होगा. 
✔️प्रतिमा विसर्जन से आपके जीवन में अनेकों बाधा घेर लेंगी..रोग और शत्रु से सदैव परेशान रहेंगे..अपराधी किस्म के..आसुरी प्रवृति वाले लोगों के द्वारा आपका धन-स्त्री-भूमि-भवन आदि हरण कर लिया जायेगा.  
✔️ यह भी संभव है कि, आप स्वयं ही आपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो जाये और दुख भोगे. 
🙏ध्यान रहे 👉 
भग्न, टूटी-फूटी प्रतिमा या मूर्ति को मंदिर या घर में नहीं रखा जाता है. ऐसे ही भग्न प्रतिमा को पवित्र सरोवर आदि में विसर्जन कर के.. उसके स्थान पर नवीन प्रतिमा कि स्थापना की जाती है. 
मूर्ति विसर्जन करने के बाद से आप लाख पूजा जाप कर लो.. फलीभूत नहीं होता है. इसके बाद आप जो भी जप पूजा करोगे..उसका पुण्य-प्रभाव तो उत्पन्न अवश्य ही होता है..पर उसका लाभ आपको नहीं मिलेगा..सारे पुण्य..सारी सिद्धि फल असुर को मिलता चला जायेगा आपके जप तप से असुर उन्नति करते चले जायेंगे और आपका जीवन अवनति और दुःख से भर जायेगा.  
मैंने तो सब बतला दिया..आपका यह बात स्वीकार करना या ना करना आपका कर्म और भाग्य. 
त्रिदेव और त्रिदेवी सबका कल्याण करें 🙏 
लेख साभार : 
मुकुंद नंदन  
(ज्योतिर्विद) 
Cont.-09334534189

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